Nov 19, 2009

चकर ना आ जाय ???







कुत्ता कल्चर

कुत्ता कल्चर समाज में तेजी से बढ रहा है । पहले लोग गाय पालते थे, अब कुत्ते पालते है । एक समय हमारे घर के बाहर लिखा होता था – “अतिथि देवो भवः” । फिर लिखा जाने लगा “शुभ-लाभ” । समय आगे बढा तो इसके बाद लिखा गया “वैलकम” । और अब लिखा जाता है – “कुत्ते से सावधान” । यह सांस्कृतिक पतन है । कुत्ते को रोटी देना, मगर उससे प्रेम मत करना । प्रेम करोगे तो मुंह चाटेगा, लाठी मारोगे तो पैर काटेगा । उसका चाटना और काटना दोनों बुरे है ।

मेरे विचार

जिंदा रहने के लिये भोजन जरुरी है । भोजन से भी ज्यादा पानी जरुरी है । पानी से भी ज्यादा वायु जरुरी है । वायु से भी ज्यादा आयु जरुरी है । मगर मरने के लिये कुछ भी जरुरी नहीं है । आदमी यों ही बैठे बैठे मर सकता है । आदमी केवल दिमाग की नस फटने और दिल की धडकन रुकने से नहीं मरता बल्कि उस दिन भी मर जाता है जिस दिन उसकी उम्मीदें और सपने मर जाते है । उनका विश्वास मर जाता है । इस तरह आदमी मरने से पहले भी मर जाता है और फिर मरा हुआ आदमी दोबारा थोडे न मरता है ।